Gurugram News: मेडिकल हब में तेजी से हुआ विकास ...पीछे छूट गईं सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं l

12-06-24, 02:16:PM | 0 views, | 2 comments

Gurugram News: मेडिकल हब में तेजी से हुआ विकास ...पीछे छूट गईं सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं l

 

रोजाना 190 से 200 तक बच्चे डायरिया ग्रस्त होकर पहुंच रहे हैं अस्पतालइमरजेंसी में प्रतिदिन आते हैं 300 गंभीर मरीज, बेड की संख्या सिर्फ बीस
अस्पताल में प्रतिदिन करीब 80 महिलाओं की डिलीवरी, बेड सिर्फ चालीस
संवाद न्यूज एजेंसी
गुरुग्राम। निजी अस्पतालों के मामले में मेडिकल हब बनी मिलेनियम सिटी में सरकारी स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं लगातार पीछे छूटती जा रही हैं। पिछले दस साल में गुरग्राम में इंफ्रास्ट्रक्चर सड़क, पुल, मल्टीस्टोरी बिल्डिंग, मॉल जैसे विकास हुए हैं वहीं, सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं विकास के बजाए पीछे चली गई हैं। निजी अस्पतालों की बात करें तो देश ही नहीं विदेशों से भी यहां बड़ी संख्या में मरीज अपना इलाज कराने आते हैं। यह बात अलग है कि सरकारी स्तर पर इलाज के लिए स्थानीय लोगों को संसाधनों के अभाव से दो-चार होना पड़ता है।
जिला नागरिक अस्पताल की इमारत कई साल पहले तोड़कर इसे 200 बेड वाला अस्पताल बनाने के दावे सरकार ने किए थे, मगर मौजूदा समय में अस्पताल सेक्टर-10 के उस अस्पताल में संचालित हो रहा है। सेक्टर 10 का अस्पताल बादशाहपुर हल्के के लिए बनाया गया था। शहर की 30 लाख की आबादी अब इसी एकमात्र सरकारी जिला अस्पताल के भरोसे है। पिछले कई साल से पुराने जिला अस्पताल का भवन तोड़ दिया गया है। नया भवन बनने की कोई सुगबुगाहट नहीं है। सेक्टर 10 के अस्पताल के पीछे 200 बेड का एक और हिस्सा बन रहा है, मगर वह पिछले डेढ़ दो साल से अधूरा है।

मंगलवार सुबह जिला अस्पताल के हालात इस बात की तस्दीक करते नजर आए कि जैसे गुरुग्राम का अस्पताल किसी कस्बे का अस्पताल हो। शहर का विस्तार और आबादी बढ़ने से स्वास्थ्य सेवाओं का कोई वास्ता नहीं हो। जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की परिचारिका बताती हैं कि प्रतिदिन इमरजेंसी में लगभग 300 मरीज आते हैं। यहां दाखिले के मात्र 20 ही बेड हैं। ऐसे में डॉक्टर और परिचारिकाओं का धर्मसंकट समझा जा सकता है। अस्पताल की इमरजेंसी में कोई आम बीमार नहीं आता है। एक बेड पर डबल, ट्रिपल मरीज को रखना मजबूरी है। अस्पताल में ओपीडी में दवा लेने वाला काउंटर हो, रजिस्ट्रेशन काउंटर हो, ओपीडी हो या फिर जांच.. हर जगह मरीज और उनके तीमारदारों को प्रचंड गर्मी में इंतजार के अलावा कोई रास्ता नहीं। बीमारी के कारण पस्त लोग गर्मी से बेहाल होकर पर्ची, डाक्टर, दवा और दाखिले के इंतजार में बीमार हो रहे हैं।


80 डिलीवरी रोज, मात्र 40 बेड
जिला अस्पताल में प्रतिदिन 60 से 80 डिलीवरी होती हैं। इनमें औसतन 20 डिलीवरी सिजेरियन होती है। अस्पताल में सुविधा तो 24 घंटे डिलीवरी की है, मगर बेड की संख्या यहां आधी ही है। गायनी वार्ड में मात्र 40 बेड हैं। ऐसे स्थिति में मजबूरी में एक बेड पर दो प्रसूताओं को भर्ती करना पड़ता है। मेडिकल वार्ड की हालत और खस्ता है। 10 बेड के डेंगू के मरीजों के वार्ड में ही मेडिकल वार्ड है। जो बेसमेंट में बना है। दस बेड पर मच्छरदानी लगी है। बाकी पर अन्य मरीज है। इस वार्ड में 42 बेड हैं, मगर रोजाना दोगुने लोग दाखिले के लिए आ जाते हैं।

डायरिया से पीड़ित 200 बच्चे रोज पहुंच रहे अस्पताल
मंगलवार को बच्चों और महिलाओं की ओपीडी के बाहर काफी संख्या में लोग अपने बच्चों को लेकर अपनी बारी का इंतजार करते नजर आए। दोपहर 12.30 बजे तक ओपीडी में 120 बच्चे देखे जा चुके थे। बाल रोग विशेषज्ञ डाॅ. उमेश मेहता के अनुसार सबसे ज्यादा बच्चे डायरिया ग्रस्त होकर अस्पताल आ रहे हैं। रोजाना औसतन 190 से 200 बच्चे डायरिया ग्रस्त होकर आ रहे हैं। बच्चों को गर्मी से बचाकर रखना सबसे ज्यादा जरूरी है। इसके अलावा हाइजीन का ख्याल रखना, सुपाच्य भोजन और पर्याप्त पेय देना भी जरूरी है। वही दूसरी ओर जिला अस्पताल में मंगलवार सुबह 11.40 तक 77 मरीज एंटी रेबीज वैक्सीन लगवा चुके थे। यहां तैनात ऋतु ने बताया कि पिछले तीन महीने पहले तक रोजाना डॉग बाइट से 50 से 70 मामले आते थे। इन दिनों रोजाना 120 से 140 लोग कुत्तों के काटे जाने का शिकार होकर आ रहे हैं।

जगह कम है मगर किसी मरीज को इनकार नहीं कर सकते
अस्पताल के प्रबंधक डाॅ. मनीष राठी ने बताया कि गर्मी बहुत ज्यादा होने के कारण अस्पताल में उतनी भीड़ नहीं है, जितनी आम दिनों में होती है। अभी वहीं लोग आ रहे हैं, जो ज्यादा गंभीर हैं। इन दिनों अस्पताल में औसतन 2000 मरीज आ रहे हैं। इनमें ज्यादातर मरीज गले में खराश और इंफेक्शन, त्वचा रोग, ईएनटी और नेत्र रोगों के हैं। इन मरीजों की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कोशिश है कि सबको उपलब्ध साधनों में बेहतर सेवाएं दी जा सकें। जहां तक अस्पताल में दाखिले का सवाल है सरकारी अस्पताल में वही केस आते हैं, जो लोग अपने स्वास्थ्य की नियमित जांच कराने में सक्षम नहीं हैं। ज्यादातर मामले जटिल होने के बाद यहां पहुंचते हैं। अस्पताल में जगह कम होने बावजूद किसी भी मरीज को इलाज से मना नहीं किया जा सकता हैं।

 

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